जब आप लिक्विडेशन, कंपनी या संस्था की सभी संपत्तियों को बेचकर मौजूदा देनदारियों को चुकाने की प्रक्रिया. इसके अलावा इसे अक्सर स्थगन विक्रय कहा जाता है, क्योंकि यह समाप्ति से पहले एक व्यवस्थित “बिक्री‑समाप्ति” रूटीन है। लिक्विडेशन में मूल्यांकन, बोली, और कर‑समायोजन जैसे कई चरण शामिल होते हैं, इसलिए इसे सही ढंग से समझना जरूरी है। लिक्विडेशन की योजना बनाते समय सबसे पहले यह देखना चाहिए कि क्या कंपनी का संचालन जारी रख पाना संभव है या नहीं; अगर नहीं, तो इस प्रक्रिया को तेज़ और पारदर्शी बनाना ही बेहतर होता है।
एक ही उद्योग में कई कंपनियों ने दिवालियापन, कर्ज़‑मुक्ति या पुनर्गठन की असफलता पर लागू कानूनी स्थिति का सामना किया है, और अक्सर यह दिवालियापन लिक्विडेशन की पहली सीढ़ी बन जाता है। जब दिवालियापन का आदेश आता है, तो न्यायालय या प्रबंधक संपत्तियों को बेचने के लिए नियुक्त होते हैं—यही लिक्विडेशन का मूल कदम है। दूसरी ओर, शेयर स्प्लिट, कंपनी के मौजूदा शेयरों को कई छोटे हिस्सों में विभाजित करने की कार्रवाई भी लिक्विडेशन के बाद निवेशकों के लिए संकेत बनती है। कई बार शेयर स्प्लिट को “बोनस शेयर” के रूप में दिखाया जाता है, जिससे कंपनी के कुल मूल्य में कोई बदलाव नहीं होता, पर शेयरों की उपलब्धता बढ़ जाती है। इसलिए शेयर स्प्लिट निवेशक के रिटर्न को प्रभावित कर सकता है, खासकर जब लिक्विडेशन के दौरान एसेट्स को पुनर्मूल्यांकन किया जाता है। इन तीन मुख्य तत्वों—लिक्विडेशन, दिवालियापन, और शेयर स्प्लिट—के बीच का संबंध अक्सर “संपत्ति मूल्यांकन → देनदारी समाधान → शेयर संरचना समायोजन” के रूप में देखा जाता है। इस क्रम को समझने से आप वित्तीय नियोजन में बेहतर निर्णय ले सकेंगे, चाहे आप कंपनी मालिक हों या संभावित निवेशक। उदाहरण के तौर पर, जब Bajaj Finance ने बोनस शेयर और स्टॉक स्प्लिट की घोषणा की, तो मार्केट को स्पष्ट संकेत मिला कि कंपनी मूलभूत संरचना को सुधारने की दिशा में कार्य कर रही थी, जिससे लिक्विडेशन जैसी घटनाओं से बचाव संभव हो सकता है। साथ ही, लिक्विडेशन के दौरान कानूनी दस्तावेज़ीकरण, कर‑प्रतिबंध, और कर्मचारियों की सेवरेंस पेमेन्ट जैसी बातें भी महत्वपूर्ण होती हैं। इनका सही प्रबंधन ना सिर्फ प्रक्रिया को तेज़ बनाता है, बल्कि भविष्य में किसी भी “बोनस शेयर” या “स्टॉक स्प्लिट” जैसी रणनीति को लागू करने में भी मदद करता है। इस कारण कई कंपनियां लिक्विडेशन से पहले अपने वित्तीय बैलेंस को सुदृढ़ करने के लिए रोटेशनल ऑडिट और वैल्यूएशन रिपोर्ट करवाती हैं। सार में, लिक्विडेशन केवल “संपत्ता‑बेचना” नहीं, बल्कि एक व्यापक वित्तीय रणनीति है जिसमें दिवालियापन का जोखिम, शेयर संरचना का पुनः मूल्यांकन, और बोनस शेयर जैसी प्रावधानें आपस में जुड़ी होती हैं। इस पेज के नीचे आप विभिन्न लेख पाएँगे जो एशिया कप, शेयर मार्केट, और सरकारी भर्ती जैसी घटनाओं को लिक्विडेशन के परिप्रेक्ष्य से जोड़ते हैं, जिससे आपके ज्ञान में व्यावहारिक जोड़ होगा। अब आगे के लेखों में हम इन सिद्धांतों को वास्तविक केस स्टडीज़ के साथ और गहराई से देखेंगे।
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