जब आप इतिहास की किताब खोलते हैं तो अक्सर एक नाम बार‑बार आता है – क्रिस्टोफर कोलंबस। वह इटली में जन्मे, लेकिन स्पेन के राजा फ़र्डिनैंड और इसाबेला के समर्थन से अपनी नावों को समुद्र पर भेजा। क्या आपको पता था कि उनका पहला सफ़र 1492 में शुरू हुआ था? उसी साल उन्होंने अटलांटिक पार कर नई दुनिया तक पहुंचने का दावा किया।
कोलंबस ने तीन जहाज़ – निनिया, पिंटा और सैंता मारिया – लेकर स्पेन से निकलकर अटलांटिक में दो महीने तक चलती हुई हवाओं का इंतज़ार किया। आखिरकार 12 अक्टूबर को उन्होंने बहीनी द्वीप पर कदम रखा, जिसे आज बहामास कहा जाता है। वहां के लोग उन्हें "गोल्डन इंसान" समझते थे क्योंकि उन्होंने सोने की छोटी-छोटी चीज़ें देखी थीं। बाद में उन्होंने कैरिबियन और दक्षिण अमेरिका के तटों को भी देखा, लेकिन वह हमेशा मानता रहा कि वह भारत पहुँचा है।
समय बीतते‑बीते कोलंबस का नाम हीरो से बदलकर आलोचना का निशाना बन गया। कई लोग कहते हैं कि उनकी यात्राओं ने मूलनिवासियों को दर्द, बीमारी और जबरन काम करवाई। उनके द्वारा लाई गई यूरोपीय रोगों ने लाखों लोगों की जान ले ली। आज इतिहासकार इस बात पर ज़ोर देते हैं कि "कॉलंबस दिवस" को कई जगह हटाकर "इंडियन रेज़िस्टेंस डे" रखा जा रहा है। फिर भी कुछ लोग उन्हें साहसिक खोजकर्ता मानते हैं, क्योंकि उन्होंने अज्ञात समुद्र को पार करके नई दुनिया की दहलीज़ खोल दी।
अगर आप सोचते हैं कि कोलंबस सिर्फ एक नाविक था, तो ये बात याद रखिए – उसकी यात्राओं ने व्यापार मार्ग बदल दिए और यूरोप में आर्थिक बदलाव लाए। स्पेन ने सोना‑चांदी के साथ बड़ी धनी हुई, लेकिन यह सब मूलनिवासियों की कीमत पर हुआ। इस तरह का इतिहास पढ़ते समय हमें दोनों पक्षों को समझना चाहिए।
कॉलंबस का जीवन कई उतार‑चढ़ाव से भरा था। पहली यात्रा सफल रही तो भी दूसरी और तीसरी में उसे स्पेन के राजा ने गुस्सा किया, क्योंकि उसने उम्मीद के मुताबिक सोना नहीं लाया। फिर भी वह वापस आया और अपनी आख़िरी चार यात्राओं में नई क्षेत्रों की खोज जारी रखी।
आज जब हम अमेरिका की स्वतंत्रता या विश्व व्यापार को देखते हैं, तो कौलंबस की भूमिका को नजरअंदाज़ नहीं किया जा सकता। उसने एक बड़े बदलाव का पहला कदम रखा था – यूरोप से एशिया तक का सीधा समुद्री मार्ग बनाना। चाहे वह सही रहा हो या नहीं, उसकी कहानी हमें बताती है कि खोज में जोखिम और जिम्मेदारी दोनों साथ चलते हैं।
आप भी यदि इतिहास की गहराई में जाना चाहते हैं तो कौलंबस के पत्रों, जहाज़ी डायरी और उस समय के नक्शे पढ़ सकते हैं। इससे आपको समझ आएगा कि वह किस तरह से अपने मिशन को देखते थे और उनके आसपास का माहौल कैसा था।
संक्षेप में, क्रिस्टोफर कोलंबस ने एक तरफ़ नई दुनिया की खोज करके मानव इतिहास को बदल दिया, तो दूसरी ओर मूलनिवासियों पर बड़े दुरुपयोगों के कारण विवाद पैदा किया। यही दोहरी सच्चाई हमें सीख देती है कि हर महान उपलब्धि के पीछे कई कहानियाँ छिपी होती हैं – कुछ उज्ज्वल और कुछ अँधेरी।
स्पेनिश फोरेंसिक विशेषज्ञ मिगुएल लोरेंटे के 22 साल के गहन अध्ययन के बाद यह खुलासा हुआ है कि प्रसिद्ध अन्वेषक क्रिस्टोफर कोलंबस एक सेफ़र्दी यहूदी थे। अध्ययन में सेविले कैथेड्रल में मौजूद कोलंबस के अवशेषों का डीएनए विश्लेषण किया गया, जिससे यह साबित हुआ कि उनके वंशजों में यहूदी वंशानुक्रम के लक्षण मौजूद हैं। यह खोज इतिहास के प्रति दृष्टिकोण को बदल सकती है।