मलयालम सिनेमा की मा: कवीयूर पोनम्मा
मलयालम सिनेमा की विख्यात और सम्मानित अभिनेत्री कवीयूर पोनम्मा का निधन शुक्रवार को 79 वर्ष की आयु में हो गया। वह कोच्चि के एक निजी अस्पताल में उम्र संबंधी बीमारियों का इलाज करा रही थीं। उनके निधन से मलयालम फिल्म उद्योग में शोक की लहर दौड़ गई है, क्योंकि उन्होंने अपने योगदान से सिनेमा जगत में एक अमिट छाप छोड़ी है।
प्रारंभिक जीवन और करियर
कवीयूर पोनम्मा का जन्म सन 1941 में हुआ था और वह बहुत ही कम उम्र में अभिनय के क्षेत्र में आ गईं। मलयालम सिनेमा में उनका करियर 1950 के दशक में शुरू हुआ था और अगले 70 सालों में उन्होंने 700 से भी अधिक फिल्मों में यादगार भूमिकाएं निभाईं। उनके किरदार मुख्य रूप से माँ और दादी के रूप में रहे, जिनमें उन्होंने अपने अभिनय कौशल से दर्शकों के दिलों में अपनी एक खास पहचान बनाई।
कवीयूर पोनम्मा ने 1960 के दशक में फिल्म 'कुदुंबिनी' से अपने फिल्मी करियर की शुरुआत की। इसके बाद उन्होंने पिछली सदी की कई दशकों तक अपने अभिनय का जलवा बिखेरा। उनके अभिनय की खूबसूरती और सजीवता ने उन्हें मलयालम सिनेमा की सबसे प्रिय अभिनेत्रियों में गिना जाता है।
सम्मान और पुरस्कार
कवीयूर पोनम्मा ने अपने जीवंत अभिनय और असीम प्रतिभा के लिए कई पुरस्कार और सम्मान जीते। उन्हें चार बार केरल राज्य फिल्म पुरस्कार से सम्मानित किया गया। उन्होंने 1994 में अपनी फिल्म 'दायम थिंगी' के लिए सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेत्री का पुरस्कार जीता था। इसके अलावा उन्होंने 'ओरू मिनामिनुंगिन्टे नूरु साल', 'यात्रा', और 'वेट्टूक्कारा' जैसी फिल्मों में भी उत्कृष्ट अभिनय के लिए विभिन्न पुरस्कार प्राप्त किए।कवीयूर पोनम्मा का नाम मलयालम सिनेमा के सबसे प्रतिष्ठित अभिनेताओं में आता है।
फिल्मों में माँ का किरदार
जहाँ तक माँ के किरदार की बात है, कवीयूर पोनम्मा ने अपनी अदाकारी से इस भूमिका को जीवंत बना दिया। उनकी फिल्में जैसे 'संदेहम', 'देस जोन पैथ', 'काकमरम', और 'नेर्मी विजय' में उनके मां बनने के किरदार ने दर्शकों के दिलों में गहरी छाप छोड़ी। एक्ट्रेस के रूप में उनकी पहचान उस समय बनी जब उन्होंने माँ के किरदार को अपनी अदाकारी से इस हद तक प्रस्तुत किया कि लोग उन्हें वास्तविक जीवन में भी माँ ही मानने लगे।
अंतिम फिल्म और व्यक्तिगत जीवन
कवीयूर पोनम्मा ने हाल ही में 'आनुम पेनुम' में अपनी अंतिम भूमिका निभाई थी, जिसमें वह स्वर्गीय नेडुमुडी वेणु के साथ नजर आई थीं। यह फिल्म उनके जीवन के अंतिम कुछ सोचनीय क्षणों की तरह थी, जिसमें वे एक अनुभवी कलाकार के रूप में अपने अभिनय का समापन कर रही थीं।
उनका व्यक्तिगत जीवन भी उतना ही विशिष्ट और प्रेरणादायक था जितना कि उनका फिल्मी करियर। वह अपने पति और बच्चों के साथ मनोरंजन से परे भी एक संतुलित जीवन व्यतीत कर रही थीं। उनके जीवन के हर पहलू ने उन्हें एक संतुलित एवं प्रेरणादायक महिला के रूप में प्रस्तुत किया।
शोक और स्मरण
कवीयूर पोनम्मा के निधन से मलयालम फिल्म जगत में एक बड़ी खाली जगह उत्पन्न हो गई है। उनके साथ काम करने वाले कलाकार और प्रशंसक उन्हें स्मरण करते हुए उनके अमूल्य योगदान की सराहना कर रहे हैं। फिल्म इंडस्ट्री में उनकी एक विशिष्ट पहचान थी और उनकी रचनात्मकता और समर्पण हमेशा सराही जाएगी।
उनके निधन से न केवल मलयालम सिनेमा, बल्कि पूरे भारतीय फिल्म उद्योग को एक ऐसी हस्ती का खोना पड़ा है, जिसने अपने जीवन में अद्वितीय योगदान दिया। उनकी स्मृति हमेशा फिल्म प्रेमियों के दिलों में जीवित रहेगी।
इस प्रकार, एक और मधुर अध्याय जिसने मलयालम सिनेमा को समृद्ध किया, समाप्त हो गया, लेकिन कवीयूर पोनम्मा की विरासत हमेशा हमारे दिलों में जीवित रहेगी। मलयालम सिनेमा की 'मां का चेहरा' आज हमारे बीच नहीं है, लेकिन उनकी यादें और उनके द्वारा निभाए गए किरदार हमेशा हमें उनकी याद दिलाएंगे।