परिवार एक ऐसा संस्थान है जो सिर्फ खाने-पीने और सोने की जगह नहीं, बल्कि परिवार, भारतीय समाज की मूलभूत इकाई जो संस्कृति, भावनाओं और जिम्मेदारियों को आगे बढ़ाती है का निर्माण करता है। आज जब शहरीकरण तेज़ हो रहा है, और नौकरियाँ दूर-दूर तक फैल गई हैं, तो परिवार की भूमिका बदल रही है। ये बदलाव बस घर के अंदर नहीं, बल्कि स्कूलों, बैंकों और स्वास्थ्य सेवाओं में भी दिख रहा है।
जब पीएम श्री योजना, मानसिक स्वास्थ्य के लिए शिक्षा संस्थानों में जागरूकता फैलाने वाली सरकारी पहल शुरू हुई, तो ये साफ़ हो गया कि परिवार का सहयोग बिना नहीं चलता। एक छात्र का मानसिक दबाव, उसके घर के वातावरण से जुड़ा होता है। जब बिहार के स्कूलों में शिक्षा सुरक्षा, छात्रों के लिए भवनों की सुरक्षा और सुविधाओं का सुनिश्चितीकरण की बात आई, तो परिवारों ने भी अपनी भूमिका निभाई—क्योंकि एक सुरक्षित स्कूल तभी काम करता है जब घर भी सुरक्षित हो।
मानसिक स्वास्थ्य, शिक्षा, आर्थिक स्थिरता—ये सब परिवार के अंदर जुड़े हुए हैं। जब राजस्थान में एक स्कूल की छत गिरी, तो परिवारों ने सिर्फ दुख महसूस नहीं किया, बल्कि सवाल उठाए: अगर बच्चे का स्कूल सुरक्षित नहीं, तो घर कैसे सुरक्षित होगा? जब बिहार ने 72 दिन की छुट्टियाँ घोषित कीं, तो ये निर्णय बस कैलेंडर का हिस्सा नहीं था—ये एक ऐसा समय था जब परिवार फिर से एक साथ बैठकर फैसले लेने का मौका पा रहा था।
आज के दौर में परिवार बस एक घर नहीं, बल्कि एक नेटवर्क है—जहाँ एक बेटी का शिक्षा का अधिकार, एक बूढ़े का मानसिक स्वास्थ्य, और एक बेटे की नौकरी का फैसला एक दूसरे से जुड़े हैं। ये लेख आपको ऐसे ही वास्तविक कहानियाँ देंगे, जो बताती हैं कि परिवार कैसे बदल रहा है, किन चुनौतियों का सामना कर रहा है, और कैसे छोटे-छोटे फैसले बड़े बदलाव ला रहे हैं।
केन विलियमसन ने माउंट मोआंगनुबी में इंग्लैंड के खिलाफ ODI में वापसी की, परिवार कारणों से अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबद्धता सीमित। उनका ‘कैजुअल’ अनुबंध टीम को स्थिरता देता है।