सामंथा रुथ प्रभु: अलग-अलग किरदारों का सफर
अगर आपने सामंथा रुथ प्रभु की फिल्में नहीं देखी हैं, तो आप दक्षिण भारतीय सिनेमा की बहुप्रशंसित अदाकारी से अंजान हैं। फिल्मों में उनका हर किरदार खुद में कुछ नया लेकर आता है। अभिनय के मामले में वे कभी कोई समझौता नहीं करतीं। उनका फिल्मी सफर सिर्फ ग्लैमर तक सीमित नहीं रहा, उनकी फिल्मों में मजबूत कहानी और दमदार किरदार भी देखने को मिलते हैं।
- रंगस्थलम (2018): इस फिल्म में सामंथा ने रामा लक्ष्मी का किरदार निभाया। वह न बोल सकती है, न सुन सकती है। इसके बावजूद उनका अंदाज दिल जीतने वाला था। ग्रामीण माहौल और राम चरण के साथ उनकी केमिस्ट्री की खूब तारीफ हुई। टीवी और वेब पर इस फिल्म ने खूब धमाल मचाया।
- सुपर डीलक्स (2019): यहाँ वे वाम्बु के रूप में दिखीं। फिल्म में उनकी कहानी समाज के दायरों को चुनौती देती है। विजय सेथुपथी और फाहद फासिल जैसे कलाकारों के साथ उन्होंने खुद को साबित किया। वाम्बु का किरदार असहज सवाल पूछता है और कई बार सामने वाले को सोचने को मजबूर करता है।
- ओ बेबी (2019): सत्तर साल की महिला एकदम से फिर से जवान और जोशीली—ऐसा ट्विस्ट फिल्मों में कम ही देखने को मिलता है। सामंथा का हास्य और इमोशन दोनों ही देखने लायक रहे। काफी लोगों ने मान लिया कि ओ बेबी बिना उनके ऐसा असरदार बन ही नहीं सकती थी।
- ईगा (2012): यह फिल्म कहानी और क्रिएटिविटी के लिए याद की जाती है। बिंदु का किरदार निभाने वाली सामंथा उस प्रेमिका का दर्द और उम्मीद, दोनों को गहराई से दिखाती हैं, जिसका प्रेमी मक्खी बन जाता है। इस फिल्म के बाद उनका नाम घर-घर में पहुँच गया।
- ये माया चेसवे (2010): करियर की शुरुआत में ही ऐसी इंटेंस लव स्टोरी! जेसी के रूप में सामंथा एक सुलझे हुए किरदार के साथ स्क्रीन पर आईं। इसी फिल्म से उन्होंने इंडस्ट्री में अपनी जगह मजबूत की।
- थेरी (2016): तेज-तर्रार पुलिस अधिकारी की पत्नी का किरदार इस एक्शन ड्रामा में उन्होंने निभाया। इसके बाद दर्शकों ने उन्हें सिर्फ रोमांटिक किरदार में नहीं, बल्कि फैमिली-ओरिएंटेड और दमदार भूमिकाओं में भी देखना शुरू कर दिया। विजय के साथ उनकी जोड़ी भी काफी चर्चित रही।
- इरुम्बु थिराई (2018): तकनीक और सस्पेंस के इर्द-गिर्द घूमती इस फिल्म में सामंथा अलग अंदाज में नजर आईं। उन्होंने अपने किरदार में कॉमेडी, इमोशन और स्मार्टनेस सबकुछ मिला दिया। महेश बाबू और वेंकटेश के साथ उनका अभिनय संतुलित था।
फिल्मों से परे सामंथा का असर
इन फिल्मों ने सामंथा को सिर्फ बड़े पर्दे पर ही नहीं, लोगों के दिलों में भी खास जगह दिलाई। वे सिर्फ एक्टिंग नहीं करतीं, अपने हर कैरेक्टर में कुछ ऐसा जोड़ देती हैं कि दर्शक उनके किरदार से खुद को जुड़ा हुआ महसूस करने लगता है। तेलुगु और तमिल फिल्मों में वे लगातार बेहतरीन रोल करती आई हैं और उनकी फैन फॉलोइंग हर शहर-गांव तक बढ़ती जा रही है।
इस लिस्ट में आपको रोमांस, कॉमेडी, एक्शन और इमोशनल ड्रामा सबकुछ मिल जाता है — और यही सामंथा को खास बनाता है। अगर आप भी साउथ सिनेमा को करीब से समझना चाहते हैं तो ये फिल्में जरूर देखें।
Anuj Poudel
जून 8, 2025 AT 11:58रंगस्थलम का रामा लक्ष्मी वाला किरदार... बस, मैंने एक बार देखा था, और फिर कभी नहीं भूला। बिना बोले, बिना सुने, सिर्फ आँखों से पूरा दर्द दिखाना... ये तो अभिनय का अल्टीमेट टूल है। इस फिल्म ने मुझे सिखाया कि आवाज़ के बिना भी इंसान क्या कह सकता है।
Vikky Kumar
जून 8, 2025 AT 17:37इस लिस्ट में एक गंभीर त्रुटि है। सामंथा का अभिनय तो तकनीकी रूप से उत्कृष्ट है, लेकिन उनकी फिल्मों में लगातार दिखाया जाने वाला नारीवादी नायिका का पैटर्न, जो अक्सर पुरुष किरदार के साथ अपनी पहचान बनाती है, एक व्यवस्थित विकृति है। इसका निर्माण बाजार की मांग के अनुकूल है, न कि कला की गहराई के लिए।
manivannan R
जून 10, 2025 AT 16:40ओ बेबी वाला ट्विस्ट? बस बहुत बढ़िया था! उनका हास्य तो ऐसा था जैसे कोई बुद्धिमान दादी बोल रही हो... और फिर वो इमोशनल वाला सीन जब वो अपने बच्चे को देखती है? बस एक बार में दिल चुरा लिया। ये फिल्म तो बिना बताए भी देखनी चाहिए।
Uday Rau
जून 11, 2025 AT 23:42ये सामंथा की फिल्में देखकर मुझे अपने गाँव की बुजुर्ग महिलाओं की याद आती हैं-जो बिना बोले भी सब कुछ समझ जाती थीं। ईगा में उनका बिंदु का किरदार? वो तो एक आध्यात्मिक प्रेम का प्रतीक है। मैंने तमिल में देखी थी, और फिर तेलुगु में दोबारा-हर बार नया अहसास। ये अभिनेत्री दक्षिण भारत की संस्कृति को सिनेमा के जरिए दुनिया को समझा रही हैं।
उनका हर किरदार एक नया दरवाज़ा खोलता है-एक दरवाज़ा जहाँ बाधाओं के बावजूद इंसानियत जीत जाती है। इस लिस्ट में सिर्फ फिल्में नहीं, बल्कि एक अनुभव का खजाना है।
sonu verma
जून 12, 2025 AT 09:26थेरी में उनका किरदार मुझे बहुत पसंद आया... मैंने उस फिल्म को तीन बार देखा। वो सिर्फ एक पत्नी नहीं, वो एक ताकत थीं। और ओ बेबी? बस... बस वो एक सीन जब वो अपने बच्चे को गोद में लेकर बोलती हैं... आँखें भर आ गईं।
Siddharth Varma
जून 13, 2025 AT 12:44ये फिल्में देखने के बाद मुझे लगा जैसे सामंथा ने मेरे दिमाग में एक नया फ़ोल्डर बना दिया-'अभिनय के वो पल जिन्हें शब्दों में नहीं बताया जा सकता'। रंगस्थलम में जब वो अपने बच्चे को छूती हैं और आँखें बंद कर लेती हैं... बस इतना ही और कुछ नहीं चाहिए।