राहुल गांधी का भाषण और विवाद
1 जुलाई को कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने लोकसभा में एक भावनात्मक भाषण दिया, जिससे देश की राजनीति में मानो भूकंप आ गया। अपने भाषण में उन्होंने भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) पर आरोप लगाया कि वे समाज को साम्प्रदायिक आधार पर बाँटने का काम कर रहे हैं। राहुल गांधी ने अपने इस भाषण में हिन्दू धर्म, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, बीजेपी और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) पर खुलकर टिप्पणियाँ कीं।
हालांकि, उनके भाषण के कुछ हिस्से स्पीकर के आदेश पर संसद के रिकॉर्ड से हटा दिए गए। हटाए गए हिस्सों में उन्होंने उद्योगपति अडानी-अंबानी और अग्निवीर योजना पर भी टिप्पणी की थी। गांधी ने अपने भाषण के दौरान पैगंबर मोहम्मद की बातें उद्धृत कीं और हिन्दू, इस्लाम, सिख, ईसाई, बौद्ध एवं जैन धर्म का उल्लेख करके निडरता के महत्व को रेखांकित किया। उन्होंने अपने वक्तव्य को प्रमाणित करने के लिए भगवान शिव, गुरु नानक और यीशु मसीह की तस्वीरें भी दिखाईं।
स्पीकर का फैसला और प्रधानमंत्री का हस्तक्षेप
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय मंत्रिमंडल के कम से कम पाँच मंत्री, जिनमें गृह मंत्री अमित शाह भी शामिल थे, ने राहुल गांधी के भाषण के दौरान हस्तक्षेप किया। प्रधानमंत्री मोदी ने गांधी पर आरोप लगाया कि उन्होंने पूरे हिन्दू समाज को हिंसक कहा। अमित शाह ने लोकसभा और देश से गांधी से माफी मांगने की मांग की, यह कहते हुए कि उनके बयान से हिन्दुओं की भावनाएँ आहत हुई हैं।
आरएसएस की प्रतिक्रिया
राहुल गांधी की टिप्पणियों पर आरएसएस ने भी प्रतिक्रिया दी है। आरएसएस के राष्ट्रीय प्रचार प्रमुख सुनील अंबेकर ने कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि महत्वपूर्ण पदों पर बैठे लोग हिन्दुत्व को हिंसा से जोड़ रहे हैं। उन्होंने कहा कि हिन्दुत्व का असली स्वरूप सहिष्णुता और समर्पण है और इसे हिंसक बताना पूरी तरह गलत है।
विपक्ष का समर्थन और बयान
विपक्षी दलों ने राहुल गांधी के समर्थन में अपने बयान जारी किए। उन्होंने कहा कि भारतीय लोकतंत्र में सभी को अपनी बात रखने का अधिकार है और स्पीकर का यह निर्णय लोकतांत्रिक मूल्यों के खिलाफ है। कांग्रेस नेताओं ने भी उनके बयान का समर्थन किया और कहा कि यह सत्ताधारी दल पर सवाल उठाता है कि वे आलोचना और असहमति को सह नहीं सकते।
भविष्य की दिशा
राहुल गांधी का यह विवादित भाषण भारतीय राजनीति में एक नया मोड़ लेकर आया है। यह देखना दिलचस्प होगा कि इस पर आगे क्या कदम उठाए जाते हैं और क्या यह मुद्दा और बड़ा रूप धारण करता है। निश्चित ही, यह मामला आने वाले चुनावों और राजनीतिक समीकरणों पर गहरा प्रभाव डालेगा।