Homebound ऑस्कर 2026 के लिए भारत की आधिकारिक एंट्री: कान्स में 9 मिनट का ओवेशन, ईशान–जान्हवी की फिल्म सुर्खियों में

Homebound ऑस्कर 2026 के लिए भारत की आधिकारिक एंट्री: कान्स में 9 मिनट का ओवेशन, ईशान–जान्हवी की फिल्म सुर्खियों में

कान्स में 9 मिनट की तालियां, टोरंटो में दर्शकों का वोट और अब ऑस्कर 2026 की रेस—नीरज घायवान की फिल्म Homebound ने वह रफ्तार पकड़ ली है जिसका इंतजार कई हिंदी फिल्मों को सालों से रहा है। फिल्म फेडरेशन ऑफ इंडिया (FFI) ने इसे 98वें एकेडमी अवॉर्ड्स के बेस्ट इंटरनेशनल फीचर फिल्म कैटेगरी के लिए भारत की आधिकारिक एंट्री घोषित कर दी। ईशान खट्टर, जान्हवी कपूर और विशाल जेठवा की यह कहानी छोटे शहरों की महत्वाकांक्षा, दोस्ती और सरकारी नौकरी की दौड़ में टूटती-बिखरती उम्मीदों को केंद्र में रखती है।

घोषणा 20 सितंबर 2025 को हुई और हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में जश्न सा माहौल बन गया। धर्मा प्रोडक्शंस के करण जौहर ने इसे “पिंच-मी मोमेंट” कहा, ईशान ने इसे अपने करियर की सबसे गर्व वाली फिल्म बताया और जान्हवी ने अपनी तैयारी और भावनात्मक सफर को याद किया। यह उत्साह सिर्फ सोशल मीडिया पोस्ट्स तक सीमित नहीं है; फेस्टिवल सर्किट में फिल्म के रिस्पॉन्स ने पहले ही माहौल बना दिया था।

कहानी, क्राफ्ट और नीरज घायवान की सिग्नेचर आवाज

फिल्म की कहानी उत्तर भारत के दो दोस्तों के इर्द-गिर्द घूमती है, जो पुलिस विभाग की नौकरी पाने के लिए नेशनल पुलिस एग्जाम की तैयारी में सब कुछ दांव पर लगा देते हैं। इस दौड़ में आत्मसम्मान, परिवार की उम्मीदें, और दोस्ती के धागे धीरे-धीरे खिंचते जाते हैं। घायवान अपनी पहचानी हुई शैली में सामाजिक यथार्थ को बेहद सादगी से रख देते हैं—बड़े संवादों की जगह रोज़मर्रा के हालात, घरेलू तनाव, और छोटे-छोटे मौन ही फिल्म की धड़कन बनते हैं।

घायवान इससे पहले ‘मसान’ और ‘गीली पुच्ची’ में यह साबित कर चुके हैं कि वह स्थानीय मिट्टी की गंध को बरकरार रखते हुए भी वैश्विक भावनाओं तक पहुंच बना लेते हैं। ‘Homebound’ को उन्होंने “अपनी जमीन और अपने लोगों में गहरे धंसी हुई कहानी” कहा—यानी पहचान, अपनापन और belonging का विषय यहां भी केंद्र में है। यही कारण है कि कान्स के Un Certain Regard सेक्शन में फिल्म की स्क्रीनिंग पर 21 मई 2025 को 9 मिनट तक दर्शकों ने खड़े होकर तालियां बजाईं—यह सिर्फ क्राफ्ट के लिए नहीं, कहानी की सादगी और असर के लिए भी था।

ईशान खट्टर का परफॉर्मेंस एक ऐसे युवा का चेहरा बनता है जो लक्ष्य के लिए खुद को घिसता चला जाता है। जान्हवी कपूर ने इस दुनिया में एक नाजुक पर ठोस उपस्थिति दी—वह सपोर्ट सिस्टम भी हैं और सवाल पूछने वाली नजर भी। विशाल जेठवा की टाइमिंग और इंटेंसिटी, दोस्ती के बदलते नक्शे को विश्वसनीय बनाती है। 1 घंटे 59 मिनट की रनटाइम में फिल्म किसी रोमांचक थ्रिलर की तरह नहीं भागती, बल्कि दबाव के जाल को धीरे-धीरे खोलती है—यहीं इसकी पकड़ है।

भारत में प्रतियोगी परीक्षाओं की हकीकत—सीटें कम, दावेदार लाखों—को फिल्म बिना उपदेश दिए दिखाती है। कमरों में ट्यूशन नोट्स, कट-ऑफ की गणित, अस्थायी नौकरी और परिवार की उधारी—ये सब यथार्थ के टुकड़े हैं जो कहानी में सहजता से शामिल होते हैं। यही टेक्सचर इसे सिर्फ एक “एग्जाम फिल्म” नहीं रहने देता, बल्कि एक सामाजिक दर्पण बना देता है।

फेस्टिवल यात्रा भी मजबूत रही। कान्स के बाद, टोरंटो इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल (TIFF) 2025 में फिल्म इंटरनेशनल पीपुल्स चॉइस अवॉर्ड की रेस में सेकंड रनर-अप रही—दर्शकों की पसंद से मिलने वाली यह मान्यता अक्सर ऑस्कर कैंपेन के लिए टोन सेट करती है।

ऑस्कर की राह: चयन प्रक्रिया, कैंपेन और अगला पड़ाव

FFI हर साल देशभर से दर्जनों फिल्मों की स्क्रीनिंग करके एक एंट्री तय करता है। इस बार ‘Pushpa 2’, ‘The Bengal Files’ और ‘Kesari Chapter 2’ जैसी पॉपुलर टाइटल्स भी चर्चा में थीं, लेकिन कमेटी ने ‘Homebound’ के पक्ष में फैसला दिया। वजह साफ है—अंतरराष्ट्रीय फेस्टिवल्स से मिले संकेत, कहानी की जमीनी सच्चाई, और ग्लोबल दर्शकों से इंस्टेंट कनेक्ट।

अब असली परीक्षा शुरू होती है—अकादमी के नियमों के मुताबिक फिल्म को तय समयसीमा में थिएट्रिकल रिलीज़ चाहिए (भारत में 26 सितंबर 2025 तय है) और आधिकारिक सबमिशन पैकेज व स्क्रीनर्स समय पर भेजने होते हैं। इसके बाद दिसंबर में शॉर्टलिस्ट और जनवरी 2026 में नॉमिनेशन का चरण आता है। यहां से आगे जीत सिर्फ फिल्म की क्वालिटी पर नहीं, उसके कैंपेन की स्ट्रैटेजी पर भी टिकती है।

  • अमेरिकी डिस्ट्रीब्यूटर और पब्लिसिटी पार्टनर: स्क्रींनिंग्स, क्यू-एंड-ए, गिल्ड शोज़, और मीडिया कवरेज की प्लानिंग।
  • क्रिटिकल कंसेंसस: प्रमुख इंटरनेशनल पब्लिकेशंस और रिव्यू इकोसिस्टम में मजबूत उपस्थिति।
  • कम्युनिटी एंगेजमेंट: अकादमी सदस्यों, फिल्म स्कूल्स और सांस्कृतिक संस्थानों के साथ फोकस्ड आउटरीच।
  • एवॉर्ड्स सीज़न कैलेंडर: गोल्डन ग्लोब/क्रिटिक्स सर्कल्स जैसे मंचों पर समय रहते दिखना।

करण जौहर की टीम के पास बड़े पैमाने पर कैंपेन चलाने का अनुभव है, और यही उनकी सबसे बड़ी ताकत बन सकती है। अलबत्ता, इंटरनेशनल डिस्ट्रीब्यूशन की डील और पीआर रोडमैप जितनी जल्दी क्लीयर होंगे, शॉर्टलिस्ट तक पहुंचने की संभावना उतनी बढ़ेगी।

रिलीज़ की बात करें तो ‘Homebound’ 26 सितंबर 2025 को दुनियाभर में थिएटर्स में आएगी। ओटीटी प्लेटफॉर्म का खुलासा अभी नहीं हुआ है, लेकिन इंडस्ट्री चर्चा में नेटफ्लिक्स का नाम सामने आ रहा है। बॉक्स ऑफिस और डिजिटल—दोनों मोर्चों पर फिल्म का परफॉर्मेंस ऑस्कर कैंपेन के मूड और बजट को प्रभावित कर सकता है।

इंडस्ट्री की प्रतिक्रियाएं भी संकेत देती हैं कि फिल्म को लेकर विश्वास मजबूत है। ईशान और जान्हवी के पोस्ट्स सिर्फ खुशी नहीं, एक तरह की राहत भी जताते हैं—कि मेहनत और रिस्क लेने का फल मिला। अलिया भट्ट समेत कई कलाकारों के बधाई संदेश इस बात का संकेत हैं कि मेनस्ट्रीम और फेस्टिवल सिनेमा के बीच की दूरी धीरे-धीरे कम हो रही है।

पिछले तीन दशकों में भारत की आधिकारिक एंट्रीज़ को ऑस्कर में फाइनल नॉमिनेशन तक पहुंचाने की चुनौती हमेशा रही है। ‘मदर इंडिया’ (1957), ‘सलाम बॉम्बे!’ (1988) और ‘लगान’ (2001)—ये तीन ही फिल्में फाइनल पाँच में पहुंचीं। हाल के वर्षों में ‘RRR’ और ‘The Elephant Whisperers’ ने अन्य कैटेगरीज़ में जीत दर्ज कर दिखाया कि भारतीय कहानियाँ वैश्विक मंच पर शिद्दत से सुनी जाती हैं। ‘Homebound’ उसी सिलसिले की अगली कड़ी बनने की क्षमता रखती है—क्योंकि यह बड़े मुद्दों को छोटे-छोटे मानवीय लम्हों में पकड़ती है।

कान्स का ओवेशन और TIFF की पहचान सिर्फ पुरस्कार नहीं, बल्कि एक भरोसा-पत्र हैं—कि यह फिल्म न केवल भारत की, बल्कि आज की दुनिया की बेचैनियों को समझती है। पुलिस भर्ती की कतारों से लेकर परिवार की रसोई तक, इसकी दुनिया अपनेपन से भरी है। यही अपनेपन की भाषा अक्सर अकादमी के वोटर्स तक सबसे पहले पहुंचती है। अब नज़रें शॉर्टलिस्ट और फिर नॉमिनेशन पर टिकेंगी—और उससे पहले, थिएटर्स में दर्शकों के फैसले पर।