जब नरेंद्र मोदी, प्रधानमंत्री ने दु:ख व्यक्त किया, तब डार्जिलिंग जिला में भीषण बाढ़ और लैंडस्लाइड ने 5 अक्टूबर 2025 को कम से कम 23 लोगों की जान ले ली, जिसमें सात छोटे बच्चे भी शामिल थे। घातक करावां मिरिक सहित कई कस्बों में फेंके गए, और डुडिया आयरन ब्रिज का पतन हजारों यात्रियों को जस्टे में फँसा दिया।
पिछला इतिहास और मौसमी परिदृश्य
डार्जिलिंग की पहाड़ी भौगोलिक स्थिति हमेशा से ही भारी वर्षा के साथ जोखिम में रही है। भारत मौसम विभाग ने 4 अक्टूबर को 300 मिलीमीटर से अधिक बारिश का अंदाज़ा लगाते हुए लाल अलर्ट जारी किया, और अगले दो दिनों में इस बारिश ने लगभग उत्तर बंगाल में 100 से अधिक लैंडस्लाइड को जन्म दिया।
पहले भी 2019 में हल्की‑भारी बारिश ने समान फसाद पैदा किए थे, लेकिन इस बार की तीव्रता और लगातार बवंडर ने बुनियादी ढांचे को चकनाचूर कर दिया।
घटनाक्रम और मौजूदा स्थिति
सर्वप्रथम, राष्ट्रीय आपातकालीन प्रतिक्रिया बल (NDRF) ने मिरिक, दार्जिलिंग उपशाखा, सरसाली, जासबिरगांव आदि क्षेत्रों में फंसे लोगों को बचाने के लिए त्वरित कार्रवाई की। रिपोर्ट के अनुसार, सात घायल लोगों को सफलतापूर्वक बचाया गया, पर 23 हताहतों की सूची अभी भी बदलती है।
डुडिया आयरन ब्रिज का ढहना अनिवार्य था; इस पुल ने मिरिक को कुर्सीयोंग से जोड़ता था। पुल के गिरते ही 100 से अधिक वाहनों और टूरिस्ट समूहों को बचाव के लिए दोबारा संघर्ष करना पड़ रहा है।
ड्राइवर, किसान और छात्र अब राष्ट्रीय राजमार्ग 10 (NH10) और राष्ट्रीय राजमार्ग 717 (NH717) के बंद होने के कारण खाने‑पीने और दवाओं के अभाव से जूझ रहे हैं।

सरकारी एवं लोक प्रतिक्रिया
यहाँ तक कि उदयगंवरु गुप्ता, उत्तर बंगाल विकास मंत्री ने पीटीआई को बताया, “मौत की संख्या अभी 20 है, आगे बढ़ सकती है, मैं खुद क्षेत्र में हूँ।”
डार्जिलिंग उप-डिप्टी अॉफ़िसर (SDO) रिचर्ड लेपचा ने कहा, “बड़ी लैंडस्लाइड के कारण सात मौतें हुई हैं, बचाव कार्य चल रहा है।”
पुलिस में डीजी और आईजी राजेश कुमार यादव ने कहा कि “स्थिति धीरे‑धीरे स्थिर हो रही है, पर राहत कार्य अभी भी जारी है।”
मुख्य मंत्री ममता बनर्जी, मुख्यमंत्री, पश्चिम बंगाल ने कहा, “नॉर्थ और साउथ बंगाल दोनों में बाढ़ का खतरा है, सरकार पूरी मदद करेगी।” उन्होंने तुरंत प्रभावित क्षेत्रों में आपूर्ति सामग्री भेज़ने का आदेश दिया।
प्रभाव और भविष्य की चुनौतियाँ
डार्जिलिंग की ग्रामीण बस्तियों में सड़कों का कटना, विद्युत लाइनें टूटना और संचार व्यवधान ने लोगों को बेशुमार समस्याओं में डाल दिया। छात्रों की पढ़ाई रुक गई, किसान अपनी फसलों को बचाने के लिए मुश्किल में हैं।
भौगोलिक विशेषज्ञ बताते हैं कि हिमालयी पठार के जलवायु‑परिवर्तन के कारण ‘अत्यधिक वर्षा‑विषमताएँ’ भविष्य में बढ़ेंगी, इसलिए बुनियादी ढांचे की मजबूती को फिर से देखना होगा।
बिलासपुर स्थित एक गैर‑सरकारी संस्था ने कहा कि “स्थानीय स्तर पर शीघ्रतम सूचना प्रणाली स्थापित नहीं होने के कारण बचाव में देरी हुई।” यह बात स्थानीय प्रशासन ने भी स्वीकार की।

आगे के कदम और संभावित समाधान
सरकार ने निकट भविष्य में डुडिया पुल को अस्थायी रूप से पुनःस्थापित करने और प्रभावित गांवों तक पहुँच बनाने को प्राथमिकता दी है। साथ ही, राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) ने दो हफ्ते में विस्तृत जोखिम मानचित्र तैयार करने का वादा किया है।
स्थानीय NGOs ने दीर्घकालिक समाधान के रूप में “भविष्य में मौसम‑अनुकूलित निर्माण” की मांग की है। इस दिशा में, भारत सरकार के ‘स्मार्ट सिटी’ प्रोजेक्ट में पहाड़ी क्षेत्रों के लिए विशेष फंडिंग की संभावना है।
अक्सर पूछे जाने वाले सवाल
कौन-से क्षेत्र अभी भी फंसे हुए हैं?
डुडिया आयरन ब्रिज के गिरने से मिरिक‑कुर्सीयोंग मार्ग बंद हो गया है। इसके अलावा, बहु‑स्थानीय गांव जैसे दार्जिलिंग उपशाखा के सरसाली और जासबिरगांव तक अभी भी पहाड़ी रास्ते पहुँच से बाहर हैं।
सरकार ने राहत के लिए क्या कदम उठाए हैं?
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तत्काल आर्थिक सहायता की घोषणा की, जबकि पश्चिम बंगाल सरकार ने उपचार शिविर, भोजन दान और अस्थायी आश्रयों की व्यवस्था तेज़ की है। NDRF ने 24 घंटे का बचाव दल स्थापित किया है।
लैंडस्लाइड के प्रमुख कारण क्या बताए गए हैं?
भारतीय मौसम विज्ञान विभाग ने बताया कि लगातार 12 घंटे में 300 mm से अधिक बारिश ने मिट्टी की स्थिरता को तोड़ दिया। साथ ही, पहाड़ी क्षेत्रों में वनशोध की कमी और अस्थिर निर्माण ने जोखिम को बढ़ाया।
भविष्य में ऐसी आपदाओं को रोकने के लिए क्या किया जा सकता है?
विशेषज्ञ मानते हैं कि सतत वनस्पति संरक्षण, जल निकासी प्रणाली की मजबूती, और सतर्कता तीव्रता‑सिस्टम (एयरियल डिटेक्शन) को लागू करके चेतावनी समय बढ़ाया जा सकता है। साथ ही, स्थानीय समुदाय को आपदा‑प्रशिक्षण देना आवश्यक है।
Sanjay Kumar
अक्तूबर 6, 2025 AT 04:15डार्जिलिंग में हालिया लैंडस्लाइड को देखते हुए हम देख सकते हैं कि मौजूदा बुनियादी ढांचा कितनी नाजुक है। भारी बरसात ने जमीन की स्थिरता को पूरी तरह खतम कर दिया। कई पुलों में पहले से ही जांच की जरूरत थी लेकिन प्राधिकरण ने इसे नजरअंदाज किया। डीएनआरएफ की त्वरित कार्रवाई सराहनीय है पर इसे और तेज़ होना चाहिए। स्थानीय प्रशासन की सूचना प्रणाली अपूर्ण थी जिससे मदद में देरी बढ़ी। इससे न केवल जानें गंवरी हैं बल्कि आर्थिक नुकसान भी अधिक हुआ। इस तरह के आपदायें भविष्य में भी हो सकती हैं जब तक जलवायु परिवर्तन को गंभीरता से नहीं लिया जाएगा।