महादेव मेले की पृष्ठभूमि और प्रमुख गतिविधियाँ
सर्दियों की ठंडी हवा बाराबंकी में बह रही थी, लेकिन लोधेश्वर महादेव मंदिर के द्वार पर एक गर्मजोशी भरी भीड़ का अहसास था। महादेव मेला ने इस साल कांवड़ यात्रा 2025 के साथ एक बड़ा समागम बना दिया, जहाँ उत्तर प्रदेश के कई जिलों और पड़ोसी राज्यों से आए श्रद्धालु अपनी भक्ति के साथ यहाँ पहुँचे। कई लोग अपने परिवार के साथ, जैन, गायत्री आदि अन्य धर्मों के अनुयायी भी इस मेले को देखना चाहते थे, जिससे माहौल और विविधतापूर्ण हुआ।
मंदिर का परिसर इस वक्त रंगों और ध्वनियों से भर गया था। सुबह के शुरुआती घंटों में गंधर्व बांसुरी, ढोलक और शंख की आवाज़ गूँज रही थी, और अभिषेक के बाद शिव जी की सत्रह वंदना जबरदस्त उत्साह के साथ गाई जा रही थी। पंडितों ने जल अर्पण के साथ पवित्र पान के पत्ते भी मंदिर के चरणों में रखे, जिससे भक्तों को शांति मिली।
मेले में कई मुख्य कार्यक्रम हुए, जिनमें से कुछ इस प्रकार थे:
- शिव-अभिषेक और जल अर्पण, जहाँ भक्तों ने जल, फल, फूल और धूपबत्ती अर्पित की, और पवित्र स्नान की आदत को दोहराया।
- कीर्तन‑भजन सत्र, जहाँ स्थानीय पंडित, शास्त्रीय संगीतकार और युवा कलाकार ने माँजिशी धुनों के साथ शिव के कई रूपों को गाया, जिससे भीड़ मंत्रमुग्ध हो गई।
- कांवड़ यात्रा का सांस्कृतिक परेड, जिसमें कावांढ़ियों ने पवित्र जल को शिव जी के पास ले जाने की परम्परा को फिर से जिंदा किया, साथ में पारंपरिक पोशाक और गीत‑नृत्य भी दिखाया गया।
- स्थानीय शिल्पकारों और भोजन स्टॉल की व्यवस्था, जहाँ लद्घे, पकोड़े, कबाब और गरमा गरम चाय का स्वाद मिल रहा था; साथ ही कारीगरों ने मिट्टी के बर्तन, जालीदार लैंप, धान के बिंदु आदि वस्तुएँ बेचीं।
इन कार्यक्रमों के बीच भक्तों ने लगातार “ओम नमः शिवाय” का जयकारा किया। जुगनू जैसे दीपक और धूपबत्ती की रोशनी ने शाम को और भी अतुलनीय बना दिया। कई बुजुर्ग पंडितों ने शाब्दिक ग्रंथों से शिव के विभिन्न रूपों पर व्याख्यान भी दिया, जिससे श्रोताओं को आध्यात्मिक ज्ञान का मिलाजुला रूप मिला। इस बीच बच्चे अपने माता‑पिता के घुटनों पर बैठकर कथा सुनते थे, जिससे पीढ़ियों के बीच धार्मिक जड़ें मजबूत हुईं।
प्रशासनिक तैयारियों और स्थानीय सहभागिता
बाराबंकी जिला प्रशासन ने इस मेले को सुरक्षित और व्यवस्थित बनाने के लिए विस्तृत योजना तैयार की थी। कांवड़ यात्रा के दौरान, सुरक्षा कर्मियों ने रूट पर ट्रैफ़िक नियंत्रण, मोबाइल सीआरटीवी कैमरा, बचाव दल और हरामजोरों की तैनाती की, जिससे किसी भी अनहोनी की संभावना न्यूनतम रही। महापौर ने भी स्थानीय लोगों को सहयोग करने के लिए प्रेरित किया और स्वच्छता अभियानों को बढ़ावा दिया।
समारोह के शुरुआती चरण में अधिकारीगणों ने फूलों की पंखुड़ियों से मंदिर के शिखर को सजाया, जिससे वातावरण में एक सुगंधित माहौल बना। यह इशारा न केवल धार्मिक भावना को सशक्त बनाता है, बल्कि प्रशासन की सम्मानपूर्ण सहभागिता को भी दर्शाता है। कई दफ़्तरों ने फूलों और पान के पत्तों की व्यवस्था की, जिससे मुख्य द्वार पर एक हरा‑भरा द्रश्य बन गया।
स्वास्थ्य विभाग ने आकस्मिक चिकित्सा शिविर लगाए, जहाँ प्राथमिक उपचार, दवाइयाँ, रक्त समूह जांच और जल शुद्धिकरण की सुविधाएँ उपलब्ध कराई गईं। इस दौरान स्थानीय डॉक्टरों, नर्सों और स्वयंसेवकों ने सहायता प्रदान की, जिससे धारा‑धारित भीड़ को कोई असुविधा न हो। तालाबों की साफ़‑सफ़ाई भी की गई ताकि पावन जल को शुद्ध रखा जा सके।
स्थानीय व्यापारी और हस्तशिल्पी भी मेले में बड़ी संख्या में आए। उन्होंने मिठाई, साड़ी, गहने और विभिन्न धार्मिक वस्तुएँ बेचीं, जिससे मेले की आर्थिक धड़कन तेज़ रही। कई ग्रामीण किसान ने अपने उत्पादों को सीधे ग्राहकों तक पहुँचाया, जिससे स्थानीय अर्थव्यवस्था को एक नई उछाल मिली। महिला समूहों ने भाग्यशाली चक्र और धूप स्तूप बेचकर अतिरिक्त आय उत्पन्न की।
भक्तों द्वारा किए गए सवाल‑जवाब सत्र और कवि संवादों ने माहौल को हल्का किया। एक स्थानीय छात्र ने कहा, “मैं यहाँ अपने दादाजी के साथ आया हूँ, और यह मेरे लिए एक नया अनुभव है। हम सब यहाँ अपने-अपने गाँव से आए हैं, लेकिन एक ही लक्ष्य है—महादेव की आरती में भाग लेना।” इस प्रकार का संवाद यह दर्शाता है कि मेले ने सामाजिक एकता को भी सुदृढ़ किया।
जैसे-जैसे शाम का समय निकट आया, आग की रोशनी और दीपों की चमक ने पूरे परिसर को एक पवित्र रूप दिया, जिससे यह स्पष्ट हुआ कि महादेव मेला ने इस साल और भी अधिक रंग लाया। भविष्य में प्रशासन ने अगले वर्ष के महादेव मेले को और बड़े पैमाने पर आयोजित करने की योजना बनाई है, जिसमें और अधिक प्रवासी साधु‑संत और सांस्कृतिक कार्यक्रम शामिल किए जाएंगे। इससे बाराबंकी की धार्मिक धरोहर को राष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिलने की आशा है।