अज़ीम प्रीमजी: भारतीय आईटी के दिग्गज और धर्मात्मा उद्यमी

अज़ीम प्रीमजी: भारतीय आईटी के दिग्गज और धर्मात्मा उद्यमी

जब Azim Premji का नाम सुनते हैं तो कई लोगों को सिर्फ एक बेहतरीन बिज़नेस लीडर की याद आती है, पर उनका सफ़र कुछ अलग ही लेवल का है। 24 जुलाई 1945 को मुंबई में जन्मे ये व्यक्ति, 21 साल की उम्र में पिता के अचानक निधन के बाद अपने पढ़ाई को छोड़कर भारत लौट गये। उस समय परिवार का व्यवसाय सिर्फ एक छोटी सी वनस्पति तेल कंपनी, जिसका नाम था विप्रो (Wipro), था।

परिवार के बोरिंग व्यापार से उभरा आईटी की महाशक्ति

पूरा भारत उस दौर में mostly खेती‑बाड़ी या स्थानीय निर्माण में लगा था, लेकिन प्रीमजी ने सोचा कि अब समय है कुछ नया करने का। उन्होंने 1970 के दशक में कंपनी के डिवीजन को इलेक्ट्रॉनिक्स और कंप्यूटर लिंकेज की ओर मोड़ दिया। उस समय के रिवॉल्यूशनरी कदमों में से एक था विदेशियों को सॉफ्टवेयर सेवाएँ देना, जो अभी भारत में नया‑नवीन था।

विप्रो ने 1980‑और 1990‑के दशकों में धीरे‑धीरे कई छोटे‑छोटे प्रोजेक्ट्स को बड़े कॉर्पोरेट कॉन्ट्रैक्ट में बदल दिया। इस दौरान प्रीमजी ने ‘क्रस्टलॉजी’ जैसे अत्याधुनिक प्रोजेक्ट को अपनाया, जिससे कंपनी को यूरोपीय और अमेरिकी बाजार में भरोसा मिला। आज विप्रो चार सबसे बड़े भारतीय तकनीकी सेवा प्रदाताओं में से एक है, और उसका राजस्व साल‑दर‑साल डबल हो रहा है।

वैश्विक मान्यता और दान‑का‑प्रवर्तक

वैश्विक मान्यता और दान‑का‑प्रवर्तक

उनकी उपलब्धियों को विश्व ने सराहा। 2004 और 2011 में टाइम मैगजीन ने उन्हें 100 सबसे प्रभावशाली लोगों की सूची में दो बार दर्ज किया। 2010 में एशिया वीक ने उन्हें दुनिया के 20 सबसे शक्तिशाली लोगों में गिना। साथ ही, The 500 Most Influential Muslims की लिस्ट में वे कई सालों तक शामिल रहे।

धनी होने के बावजूद, प्रीमजी का जीवन शैली बेहद सादा रहा है। जब तक 2010 के बाद तक वह फ़ोर्ड एस्कॉर्ट चलाते थे, तब तक उनका व्यक्तिगत खर्च भी साधारण था। आज भी उनका फ़ोकस इन्सानियत पर है, न कि वस्तु‑संपदा पर। 2015 में उन्होंने अपने Wipro के 18% शेयर दान कर दिए, जिससे उन्होंने $2 बिलियन से भी अधिक की राशि चैरिटी को दी। यह पहला भारतीय था जिसने Giving Pledge पर हस्ताक्षर किए थे – एक वैश्विक पहल जिसमें बिल गेट्स और वॉरेन बफेट ने मिलकर दान‑दायी उधोगपतियों को अपनी संपत्ति का बड़ा हिस्सा चैरिटी में देना सिखाया है।

उनकी फ़िलैंथ्रॉपी का मुख्य फ़ोकस शिक्षा है। 2001 में स्थापित अज़ीम प्रीमजी फ़ाउंडेशन ने ग्रामीण इलाक़ों में प्राथमिक शिक्षा की गुणवत्ता सुधारने के लिये कई प्रोग्राम लॉन्च किए। पहले दशक के अंत तक यह फ़ाउंडेशन 16,000 से अधिक स्कूलों में कंप्यूटर‑आधारित शिक्षा प्रदान करने में सक्षम हो गया। इसके अलावा, बेंगलुरु में अज़ीम प्रीमजी यूनिवर्सिटी का चांसलर भी वे ही हैं, जहाँ शिक्षा नीति, सामाजिक विज्ञान और सार्वजनिक प्रशासन के अध्ययन को प्रोत्साहन दिया जाता है।

सरकार ने भी उनके योगदान को सराहा है – 2011 में उन्हें पद्म वीभूषण से सम्मानित किया गया, जो भारत का दूसरा सबसे बड़ा नागरिक सम्मान है। यह पुरस्कार न केवल उनके व्यवसायिक कौशल को दर्शाता है, बल्कि सामाजिक जिम्मेदारी में उनकी अग्रणी भूमिका को भी मान्यता देता है।

आज भी प्रीमजी का अंदाज वही है – वह एक सादे व्यक्ति रहकर भी विश्व की सबसे बड़ी टेक कंपनियों में से एक के प्रमुख हैं। उनके निर्णयों में हमेशा दीर्घकालिक दृष्टिकोण रहा है, चाहे वह नए तकनीकी प्लेटफ़ॉर्म में निवेश हो या शिक्षा के क्षेत्र में सतत सुधार के लिये फंड बनाना। उनका उद्यमी सफ़र हमें बताता है कि कठिन समय में भी दृढ़ निश्चयी रहकर, सही दिशा में छोटे‑छोटे कदम उठाने से बड़ा बदलाव संभव है।