पेरिस पैरालिम्पिक्स 2024: होकाटो होटोझे सेमा ने पुरुषों के शॉट पुट F57 में जीता कांस्य पदक

पेरिस पैरालिम्पिक्स 2024: होकाटो होटोझे सेमा ने पुरुषों के शॉट पुट F57 में जीता कांस्य पदक

पेरिस पैरालिम्पिक्स 2024: होकाटो होटोझे सेमा ने पुरुषों के शॉट पुट F57 में जीता कांस्य पदक

पेरिस 2024 पैरालिम्पिक्स में भारतीय पैरालथलीट होकाटो होटोझे सेमा ने पुरुषों के शॉट पुट F57 इवेंट में कांस्य पदक जीतकर एक नया इतिहास रचा। स्टेड डे फ्रांस में शुक्रवार, 6 सितंबर को हुए इस मुकाबले में सेमा ने 14.65 मीटर की एक पर्सनल बेस्ट थ्रो मारकर यह सफलता हासिल की। यह थ्रो उनकी चौथी कोशिश के दौरान हुई।

होकाटो होटोझे सेमा ने इस प्रदर्शन के माध्यम से न केवल कांस्य पदक जीता बल्कि अपने जीवन का पहला पैरालिम्पिक पदक भी प्राप्त किया। इस इवेंट में इरान के यासिन खॉस्रवी ने स्वर्ण पदक प्राप्त किया, जिन्होंने 15.96 मीटर की नई पैरालिम्पिक रिकॉर्ड थ्रो की। जबकि ब्राजील के थियागो डॉस सैंटोस ने 15.06 मीटर की थ्रो के साथ रजत पदक हासिल किया।

सेमा के हमवतन, सोमन राणा ने इस प्रतियोगिता में भी भाग लिया और वे 14.07 मीटर की सर्वश्रेष्ठ थ्रो के साथ पांचवें स्थान पर रहे। 

सेमा की संघर्षमय यात्रा

सेमा की जीत उनकी संघर्षमयी यात्रा को भी दर्शाती है। 40 वर्षीय होकाटो होटोझे सेमा नागालैंड के रहने वाले हैं और भारतीय सेना में हवलदार के रूप में सेवा कर रहे हैं। उन्होंने 2002 में एक ऑपरेशन के दौरान एक लैंडमाइन विस्फोट में अपना बायां पैर खो दिया था। हालांकि, उन्होंने हार नहीं मानी और सेना के पैरा स्पोर्ट्स नोड के माध्यम से पैरा खेलों में शामिल हो गए।

सेमा की यह कांस्य पदक जीत एक महत्वपूर्ण संकेत है और इसे पैरालिम्पिक्स की F57 श्रेणी की कठिन चुनौतियों के बीच देखा जा रहा है। इस श्रेणी में एथलीटों को बैठे हुए अवस्था में केवल अपनी ऊपरी शरीर से शक्ति उत्पन्न करनी होती है। यह कोई आसान काम नहीं होता, लेकिन होकाटो ने अपनी कड़ी मेहनत और समर्पण के साथ यह मुमकिन कर दिखाया।

भारतीय दल की उपलब्धियां

इस कांस्य पदक के साथ ही होकाटो होटोझे सेमा ने पेरिस पैरालिम्पिक्स 2024 में भारत का 27वां पदक हासिल कर लिया है। भारत का वर्तमान में कुल पदक तालिका में 17वां स्थान है। इस इवेंट में अपनी जीत के साथ सेमा ने भारतीय एथलेटिक्स में कुल 15वां पदक जोड़ा है, जिससे भारत ने टोक्यो पैरालिम्पिक्स 2021 में जीते गए पदकों के संख्या को लगभग दोगुना कर दिया है।

सेमा की यह जीत ना केवल उनके व्यक्तिगत करियर के लिए बल्कि भारतीय पैरालिम्पिक टीम के लिए भी एक गर्व का क्षण है। उनकी कहानी हजारों अन्य एथलीटों के लिए प्रेरणा स्रोत बनी हुई है, जो अपने सपनों को हासिल करने के लिए कठिनाईयों का सामना कर रहे हैं।

भारतीय एथलीटों के असाधारण प्रदर्शन ने देश को फिर से गर्वित किया है और पैरालिम्पिक्स में उनकी और भी उम्मीदें बंधा दी हैं। भविष्य में भी ऐसी और भी सफलताओं की उम्मीद की जा रही है, जिससे भारतीय पैरालिम्पिक समुदाय को नई ऊँचाइयों तक पहुंचाया जा सके।

इस प्रकार, होकाटो होटोझे सेमा का कांस्य पदक ना केवल उनका व्यक्तिगत उपलब्धि है, बल्कि यह भारतीय खेलों के लिए भी एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है।

12 Comments

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    Hemant Saini

    सितंबर 8, 2024 AT 09:43
    इस जीत को बस एक पदक नहीं कह सकते... ये तो एक जीवन की लड़ाई का प्रतीक है। जब तक इंसान के अंदर इच्छाशक्ति है, कोई भी बाधा उसे रोक नहीं सकती। होकाटो की कहानी बस एक एथलीट की नहीं, बल्कि हर उस इंसान की है जो अपने दर्द को अपनी ताकत बना लेता है।
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    Snehal Patil

    सितंबर 9, 2024 AT 02:06
    बस एक कांस्य पदक? अरे भाई ये तो जीत का अंत नहीं, शुरुआत है 😭🏆 और ये लड़का जिसने लैंडमाइन में पैर खोया, अब दुनिया को दिखा रहा है कि शरीर की सीमाएं दिमाग की नहीं होतीं! 💪🔥
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    Kulraj Pooni

    सितंबर 9, 2024 AT 21:34
    इतनी मेहनत के बाद भी केवल कांस्य? ये भारत की खेल प्रणाली का असली दर्द है! अगर उन्हें अच्छा ट्रेनर, अच्छा सुविधा, और अच्छा फंडिंग मिलता, तो स्वर्ण तो बस शुरुआत होता! लेकिन हमारे नेता तो बस फोटो खींचने के लिए बैठे रहते हैं।
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    chirag chhatbar

    सितंबर 11, 2024 AT 20:48
    kya baat hai yaar... ye toh sirf ek shot put hai... maine toh gym jaakar 10kg uthaya tha aur maine socha ki main hero ban gaya 😅 par ye log apne leg ko kho kar bhi 14.65m phelte hain... mera dimaag toh abhi bhi shock mein hai...
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    Arun Kumar

    सितंबर 13, 2024 AT 05:41
    ये सब बहुत अच्छा लगा... लेकिन असली सवाल ये है कि भारत में इतने लोग अपने बच्चों को खेल नहीं करने देते क्योंकि उन्हें लगता है ये नौकरी नहीं है! होकाटो की जीत का फायदा किसे हुआ? किसी को नहीं! अभी तक देश में खेल के लिए कोई स्कूल नहीं है!
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    sunil kumar

    सितंबर 14, 2024 AT 05:48
    ये जीत एक एथलीट की नहीं... ये तो एक सिस्टम के खिलाफ लड़े गए संघर्ष की जीत है! फिजिकल लिमिटेशन? नहीं भाई! ये तो एक अनसुनी आवाज़ का जवाब है! उसने अपनी ऊपरी शक्ति से दुनिया को दिखाया कि असली शक्ति तो दिल में होती है! ये जीत उसकी है... और हम सबकी है! 🙌💥
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    Vikash Yadav

    सितंबर 15, 2024 AT 06:59
    भाई ये लड़का तो बस एक गोला फेंक रहा था... लेकिन उसके पीछे जो आग थी, वो तो एक विस्फोट जैसी थी! देखो ना ये दुनिया कितनी जल्दी लोगों को भूल जाती है... लेकिन जब कोई असली जीत दिखाता है, तो दिल नहीं भूलता! ये जीत एक बैठे हुए आदमी की नहीं... ये तो एक असली राजा की है! 👑🔥
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    Nabamita Das

    सितंबर 15, 2024 AT 15:26
    होकाटो की यह जीत केवल एक थ्रो नहीं है, यह एक अधिकार है। F57 श्रेणी में शरीर की सीमाएं नहीं, दिमाग की सीमाएं तय करती हैं। उन्होंने अपने बायें पैर की कमी को एक बल के रूप में बदल दिया। इस तरह की जीत के लिए कोई सरकारी निधि नहीं, कोई विज्ञापन नहीं, केवल एक इच्छा और एक अपना दिल।
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    Aman Sharma

    सितंबर 15, 2024 AT 17:53
    कांस्य पदक? अरे ये तो एक फॉर्मलिटी है। इरान ने नया रिकॉर्ड बनाया, ब्राजील ने रजत, और हमारा एथलीट... बस एक छोटी सी थ्रो के साथ चला गया। ये तो एक अनुभव है, लेकिन जीत नहीं। अगर ये भारत की गर्व की बात है, तो फिर टोक्यो में हमने जो किया, वो क्या था?
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    sivagami priya

    सितंबर 16, 2024 AT 01:04
    मैं तो रो पड़ी... ये लड़का जिसने अपना पैर खोया, उसने दुनिया को दिखाया कि असली जीत तो वो होती है जब तुम खुद को दोबारा जीत लेते हो! 🙏❤️ भारत के लिए ये बहुत बड़ी बात है... और ये सिर्फ शुरुआत है!
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    Anuj Poudel

    सितंबर 16, 2024 AT 11:38
    इस जीत के पीछे का विज़न क्या है? क्या हम अपने पैरालिम्पिक एथलीटों के लिए एक स्थायी ट्रेनिंग इंफ्रास्ट्रक्चर बना रहे हैं? या फिर ये सिर्फ एक बार की चमक है? होकाटो की कहानी तो बहुत प्रेरणादायक है, लेकिन अगर हम इसे एक इमोशनल वीडियो के तौर पर भूल जाते हैं, तो ये जीत बेकार हो जाएगी।
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    Aishwarya George

    सितंबर 18, 2024 AT 07:11
    होकाटो होटोझे सेमा की यह जीत भारत के लिए एक नया मानक स्थापित करती है। F57 श्रेणी में ऊपरी शरीर की शक्ति का उपयोग करना, बैठे हुए अवस्था में गति और नियंत्रण विकसित करना, और एक लैंडमाइन विस्फोट के बाद भी खेल में वापसी आत्मविश्वास का अद्भुत उदाहरण है। उनकी यह जीत न केवल एक पदक है, बल्कि एक सामाजिक संदेश है: असमर्थता नहीं, असंभवता का अभाव है।

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